Wednesday, April 23, 2014

मंज़िले और भी है 04-23



मंज़िले और भी है सितारों से आगे।
क्षितिज के पार , हैं तेरी मंज़िलों की राहें।

बादलों का सारथ्य ले, कूच कर अंतरिक्ष ब्रम्हांड पर।
बसेरा कर, कैलाश पर्वत की चट्टानों पर।
निशाना साध वैकुण्ठ के सिंहद्वारों पर।
श्रुष्टि की प्रति श्रुष्टि कर, अपने सदृढ़ संकल्प से।

बुलंद इरादों के बूते, एक नया ज़माना पैदा कर।
नयी सुबह शाम पैदा कर।

 इस ज़ालिम ज़माने में, अपना मक़ाम पैदा कर।
अपना मक़ाम पैदा कर।

मंज़िले और भी है सितारों से आगे।......

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kaviraj

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